पत्रकारों को धमकाना, नोटिस भेज देना, उनके ख़िलाफ़ एफ़आइआर करा देना कितना आसान हो गया है !
यूपी के बलरामपुर ज़िले में पिछले महीने एक लड़की की बलात्कार के बाद जघन्य तरीक़े से हत्या कर दी गई थी। पोस्टमार्टम के बाद परिजनों से बिना पूछे प्रशासन ने ज़बरन उसका अंतिम संस्कार करा दिया। उस समय हाथरस में हुई एक ऐसी ही अन्य घटना सुर्ख़ियों में थी।
परिजनों का आरोप था कि लड़की अपने साथ हुई ज़्यादती के बाद जब उन्हें मिली तो उसके शरीर पर चोटों के निशान थे, हाथ-पैर और गर्दन में भी काफ़ी चोटें आई थीं। स्थानीय रिपोर्टरों ने इस मामले में पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की लेकिन किसी अधिकारी ने न तो फ़ोन उठाया और न ही इन आरोपों पर कोई बयान जारी किया।
अब उन रिपोर्टरों को पुलिस वाले नोटिस भेज रहे हैं कि आपने घटना को रिपोर्ट करके और प्रसारित करके अफ़वाह फैलाने का काम किया है। नोटिस की भाषा पढ़िए। साफ़ पता चल रहा है कि पुलिस वाले कहना चाह रहे हैं कि या तो आप शरणागत हो जाइए या फिर आगे की कार्रवाई यानी एफआईआर के लिये तैयार हो जाइए।
यह भी पता चला है कि ज़िले के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने उन पत्रकारों को धमकाने वाले अंदाज़ में कहा, “बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट के ख़बर चलाने की कौन सी हड़बड़ी थी। दो दिन इंतज़ार नहीं कर सकते थे।”
मतलब आपको जब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट न मिले तब तक ख़बर न चलाइए और पोस्टमार्टम रिपोर्ट तभी मिलेगी जब ये अफ़सरान चाहेंगे। ग़ज़ब का तर्क है!
अब यह भी पता चला है कि कुछ अधिकारी पत्रकारों को इसके लिए यह सफ़ाई दे रहे हैं कि ऐसा करने के लिए उन्हें ऊपर से आदेश मिला है।
सेल्यूट है उन रिपोर्टरों को जो ऐसी धमकियों और कार्रवाइयों के बावजूद अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं।